एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म कल हुई थी रिलीज़, आज थिएटर खाली, डूब गए निवेशकों के करोड़ों रु


एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म कल हुई थी रिलीज़, आज थिएटर खाली, डूब गए निवेशकों के करोड़ों रु देश के भूतपूर्व और अभूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की छवि को खराब करने के उद्देश्य से बनाई गई फिल्म द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर आज बड़े पर्दे पर रिलीज हुई और पहले दिन ये फिल्म कोई भी करामात करने में असफल साबित हुई. दर्शकों ने पूरी तरह से इस फिल्म को नकार दिया. जो लोग इस फिल्म को देखने भी पहुंचे, उन्होंने पहली प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यही कहा कि फिल्म देखने में समय भी बर्बाद और पैसे भी. फिल्म समीक्षकों ने भी अपने रिव्यू में अनुपम खेर का अब तक का सबसे खराब अभिनय बताया है. पहले दिन ही बॉक्स ऑफिस पर इस मूवी का जो हश्र हुआ है उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि निवेशकों के करोड़ों रुपये डूब जाएंगे और निर्देशक विजय गुट्टे का भविष्य भी चौपट हो जाएगा. देखने से ही लगता है फिल्म झूठ का पुलिंदा विजय रत्नाकर गुट्टे के निर्देशन में बनीं ये फिल्म एक बड़ा अवसर साबित हो सकती थी लेकिन जरुरत से ज्यादा झूठ दिखाने के कारण बात बन नहीं पाई. फिल्म की शुरुआत में ही यह बता दिया जाता है कि यह फिल्म मनोरंजन के लिए बना हुआ है और दर्शकों के मनोरंजन के लिए कई चीजें अपनी ओर से जोड़ दी गई है, इस वजह से फिल्म की गंभीरता ही समाप्त हो जाती है. इतना ही नहीं फिल्म में बहुत ज्यादा गहराई भी नहीं है. नाम दिया गया द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और कहानी पूर्व पीएम नरसिम्हा राव के अंतिम संस्कार तक पहुंच जाती है, जिससे साफ झलकता है कि फिल्म दुर्भावना से ग्रस्त होकर बनाई गई है. संजय बारु को ज्यादा होशियार दिखाया फिल्म में यह बताया जा रहा है कि मनमोहन सिंह से ज्यादा चतुर और होशियार उनकी पत्नी गुरुशरण कौर हैं. फिल्म मजाकिया तब बन जाता है जब यह बताया जाता है कि मनमोहन सिंह के जीवन काल का सर्वाधिक काबिल इंसान संजय बारु हैं मतलब कि जिसने कहानी लिखी है वह व्यक्ति खुद को सबसे बड़ा गुणवान और काबिल बता रहा है. इससे आप खुद अंदाज लगाए कि लेखक अपनी तारीफ करवा रहा है और अपने बॉस का चरित्र हनन. संजय बारु का यह दबदबा फिल्म को बोरिंग बनाता है. फिल्म में राहुल गांधी को भी पप्पू की छवि में दिखाया गया है, जिससे एक बार फिर फिल्म बनाने वालों के इरादे पर शक पैदा होता है. बार बार संजय बारु का पलड़ा भारी दिखाने पर लगता है कि फिल्म का नाम द प्राइम मिनिस्टर एडवाइजर होना चाहिए था. ऐसा लगता है कि फिल्म किसी खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए हड़बड़ाहट में बना कर रिलीज कर दिया गया. इसके साथ ही फिल्म की सिनेमाटोग्राफी भी बेहद घटिया है और कुछ कैमरा एंगल भी बड़े उटपटांग हैं. देखने लायक फिल्म नहीं कुल मिलाकर ये देखने लायक फिल्म ही नहीं थी. इसके पीछे पीएम मोदी और उनके स्वघोषित चाटुकार अनुपम खेर का शैतानी दिमाग लगा हुआ था. फिल्म बनाने को कोई तैयार नहीं था लेकिन विजय गुट्टे जैसे फ्रॉड के केस में जेल जा चुके लोगों की मदद से इस साजिश वाली फिल्म को अंजाम दे दिया गया. पब्लिक ने भी इस खेल को समझा और फिल्म को बुरी तरह नकार दिया. थियेटरों में ये फिल्म एक सप्ताह भी टिक जाए तो बड़ी बात होगी.

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